सोमवार, दिसंबर 17, 2018

ग़ज़ल ..... किताबें - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

लगती भले हों पहेली किताबें  ।
बनती हैं हरदम सहेली किताबें।

भले हों पुरानी कितनी भी लेकिन
रहती हमेशा नवेली किताबें।

देती हैं भाषा की झप्पी निराली
अंग्रेजी, हिन्दी, बुंदेली किताबें।

चाहे ये दुनिया अगर रूठ जाये
नहीं रूठती इक अकेली किताबें।

शब्दों की ख़ुशबू से तर-ब-तर सी
महकाती "वर्षा", हथेली किताबें।

       📚📖 - डॉ. वर्षा सिंह

#ग़ज़लवर्षा

शनिवार, दिसंबर 15, 2018

आंसू, अश्क़ और शायरी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

दुख और सुख जीवन के दो पहलू हैं। सुख में उल्लासित हृदय झूम उठता है आंखों में ख़ुशी के आंसू भर जाते हैं तो दुख में हृदय व्यथित हो उठता है, ग़म के आंसू आंखों से छलक पड़ते हैं। …. तो आज मैं चर्चा करना चाहती  हूं दुख के आंसुओं, अश्कों की शायरी पर… हिन्दी और उर्दू में की गई शायरी की एक झलक….
क़तील शिफ़ाई


मिल कर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
इक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम

आँसू झलक झलक के सताएँगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम

जब दूरियों की आग दिलों को जलाएगी
जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम
                    - क़तील शिफ़ाई

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
                      - गुलज़ार

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं

घने धुएँ में फ़रिश्ते भी आँख मलते हैं
तमाम रात खुजूरों के पेड़ जुलते हैं

मैं शाहराह नहीं रास्ते का पत्थर हूँ
यहाँ सवार भी पैदल उतर के चलते हैं
         - बशीर बद्र
त्रिलोचन

वह कल, कब का बीत चुका है--आँखें मल के
ज़रा देखिए, इस घेरे से कहीं निकल के,
पहली स्वरधारा साँसों में कहाँ रही है;
धीरे-धीरे इधर से किधर आज बही है ।
क्या इस घटना पर आँसू ही आँसू ही ढलके ।
- त्रिलोचन
सोम ठाकुर

कौन–सा मन हो चला गमगीन जिससे सिसकियां भरती दिशाएं
आंसुओं का गीत गाना चाहती हैं नीर से बोझिल घटाएं
- सोम ठाकुर

सिर्फ़ चेहरे की उदासी से भर आए आंसू फ़राज़
दिल का आलम तो अभी आपने देखा ही नहीं
-अहमद फ़राज़

फ़िर आज अश्क़ से आंखों में क्यूं हैं आए हुए
गुज़र गया है ज़माना तुझे भुलाए हुए
- फ़िराक गोरखपुरी

गोपाल दास नीरज
माला बिखर गयी तो क्या है
ख़ुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या,
   - गोपाल दास नीरज

यह उड़ी उड़ी सी रंगत, यह खिले खिले से आंसू
तेरी सुबह कह रही है, तेरी रात का फ़साना
-दाग़ देहलवी

अश्क आंखों में कब नहीं आता,
लहू आता है जब नहीं आता
- मीर तकी मीर


रामदरश मिश्र
कुछ अपनी कही आपकी कुछ उसकी कही है
पर इसके लिए यातना क्या-क्या न सही है

भटका कहाँ-कहाँ अमन-चैन के लिए
थक-थक के मगर घर की वही राह गही है

तुम लाख छिपाओ रहबरी आवाज़ में मगर
झुलसी हुई बस्ती ने कहा— ये तो वही है

आँगन में सियासत की हँसी बनती रही मीत
अश्कों से अदब के वो बार-बार ढही है
- रामदरश मिश्र

भीड़ में दुनिया की आकर सारे आंसू खो गए हैं
देखिये उनसे कहाँ आकर हमारे ग़म मिलेंगे

मेरी मुठ्ठी में सिसकते एक जुग्नू ने कहा था
देखना आगे तुम्हें सारे दिए मद्धम मिलेंगे
         - अमीर ईमाम

राजेश रेड्डी
सोच लो कल कहीं आँसू न बहाने पड़ जाएँ
ख़ून का क्या है रगों में वो यूँही खौलता है
- राजेश रेड्डी
रोक लेता हूँ आँसू, मगर सिसकियों पर मिरा बस नहीं
-राजेश रेड्डी

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
चार क़िताबें पढ़ कर दुनिया को पढ़ पाना मुश्क़िल है।
हर अनजाने को  आगे बढ़, गले लगाना  मुश्क़िल है।
सबको रुतबे से मतलब है,  मतलब है पोजीशन से
ऐसे लोगों से,  या रब्बा! साथ निभाना मुश्क़िल है।
शाम ढली   तो मेरी आंखों से आंसू की धार बही
अच्छा है,  कोई न पूछे, वज़ह  बताना मुश्किल है।
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

ज़ंज़ीर आंसुओं की कहाँ टूट कर गिरी
वो इन्तहाए-ग़म का सुकूँ कौन ले गया
- ख़लीलुर्रहमान आज़मी

और अंत में कृपया मेरी यानी डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में आंसू की मौजूदगी पर भी एक नज़र डालें ......
कट रहे हैं जंगलों के हाशिए
चांदनी ने रात भर आंसू पिए

अब नहीं वे  डालियां जिन पर कभी
बुलबुलों ने प्यार के दो पल जिए

किस तरह उजड़ी हुई सी भूमि पर
रख सकेंगे उत्सवों वाले दिए
- डॉ. वर्षा सिंह

Sketch by Dr. Varsha Singh

वहशीपन ने बचपन के पर काट दिये
आंसू बन कर छलके अम्बर के सपने

कर्जे की गठरी से जिनकी कमर झुकी
कृषकों को आते हैं ठोकर के सपने

कंकरीट के जंगल वाले शहरों में
धूलधूसरित आंगन, छप्पर के सपने
- डॉ. वर्षा सिंह

Sketch by Dr. Varsha Singh

सच्चाई की काया देखो, कितनी दुबली- पतली है
जब-जब खुदे पहाड़ यहां पर हरदम चुहिया निकली है

यूं तो हर मुद्दे पर पूछा - “ कहो मुसद्दी ! कैसे हो?" बोल न पाया लेकिन कुछ भी, मुंह पर रख दी उंगली है

‘बुधिया’ के मरने पर निकले ‘घीसू’- ‘माधव’ के आंसू
वे आंसू भी नकली ही थे, ये आंसू भी नकली है

कोई भी आवाज़ दबाना, अब इतना आसान नहीं
चैनल की चिल्लम्पों करती, चींख-चींख कर चुगली है
- डॉ. वर्षा सिंह


Sketch by Dr. Varsha Singh



सोमवार, दिसंबर 03, 2018

उर्दू- हिन्दी शायरी में चांद और चांदनी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
उर्दू- हिन्दी शायरी में चांद और चांदनी पर बहुत कुछ कहा - लिखा गया है। आज शायरी चांद और चांदनी की चर्चा कर रही हूं। ये कुछ ऐसे अशआर, कुछ ऐसी ग़ज़लों का ज़िक्र कर रही हूं मैं, जो मुझे अच्छे लगते हैं…. यकीनन आपको भी पसंद आयेंगे।

बेसबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद


छू के देखा तो गर्म था माथा
धूप में खेलता रहा है चाँद

सूखी जामुन के पेड़ के रस्ते
छत ही छत पर जा रहा है चाँद
- गुलज़ार

चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
- फ़रहत एहसास

हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा
- बशीर बद्र


ये तो देखने पर है ये तो सोचने पर है
चाँद आरज़ू भी है चांदनी कफ़न भी है
- राही मासूम रज़ा


Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh

ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गयी
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी

एक मैं, एक तुम, एक दीवार थी
ज़िन्दगी आधी आधी बंटी रह गयी

मैंने रोका नहीं वो चला भी गया
बेबसी दूर तक देखती रह गयी

मेरे घर की तरफ धूप की पीठ थी
आते आते इधर चांदनी रह गयी
-बशीर बद्र

दिल में ऐसे उतर गया कोई
जैसे अपने ही घर गया कोई

इतने खाए थे रात से धोखे
चाँद निकला कि डर गया कोई

इश़्क भी क्या अजीब दरिया है
मैं जो डूबा, उभर गया कोई
- सूर्यभानु गुप्त

कल चौदवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
- इब्ने इंशा

Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh
चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी
– दुष्यंत कुमार


मन में सपने अगर नहीं होते,
हम कभी चाँद पर नहीं होते।

सिर्फ जंगल में ढूँढ़ते क्यों हो?
भेड़िए अब किधर नहीं होते।

जिनके ऊँचे मकान होते हैं,
दर-असल उनके घर नहीं होते।

प्यार का व्याकरण लिखें कैसे,
भाव होते हैं स्वर नहीं होते।
- उदयभानु 'हंस'

दूर के चांद को ढूंढो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
- निदा फ़ाज़ली


तुम भी लिखना तुम ने उस शब कितनी बार पिया पानी
तुम ने भी तो छज्जे ऊपर देखा होगा पूरा चाँद
- निदा फ़ाज़ली


Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh


जिंदगी की हर मंजिल मुकद्दर की कैद में
आज भी है मेरा साहिल समंदर की कैद में

रोते हुए बादल को है सदियों से ये खबर
जलती हुई चांदनी है एक पत्थर की कैद मेंं
- राजीव सिंह


रात हुई है चाँद जमीं पर हौले-हौले उतरा है,
तुम भी आ जाते तो सारा नूर मुकम्मल हो जाता
- कुमार विश्वास

उसी तरह से हर इक ज़ख़्म खुशनुमा देखे
वो आये तो मुझे अब भी हरा-भरा देखे

गुज़र गए हैं बहुत दिन रिफ़ाक़ते-शब में
इक उम्र हो गई चेहरा वो चाँद-सा देखे
- परवीन शाकिर

Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh

रात को रोज़ डूब जाता है
चाँद को तैरना सिखाना है
- बेदिल हैदरी

वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
- फ़रहत एहसास

माथे पे तेरे चमके है झूमर का पड़ा चाँद
ला बोसा चढ़े चाँद का वादा था चढ़ा चाँद
- ज़ौक

रात के नाम  एक ख़त लिखना
चांद है फिर उदास मत लिखना
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

नींद आए तो ख़्वाब  आएंगे
होंठ  कुछ लम्हा मुस्कुराएंगे
चांद का नूर याद कर कर के
रात   की आयतें   सुनाएंगे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh


बेचैनी की गठरी में बंध, रातें लगतीं बुझी-बुझी सी
आसमान पर चांद अकेला देर रात मुझ पर रोता है
अपनी तनहाई के ख़त को रोज खोलना, रोज बांचना
हर कोई अपने *माज़ी को आखिर क्यों इतना ढोता है ?
(*माज़ी=अतीत)                            
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा,
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआँ तन्हा

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा

जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा
- मीना कुमारी


Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh


चाँद तारों की गुफ्तगू सुनता रहा रात भर
जलन से बादल रंग बदलता रहा रात भर

मखमल के बिस्तर से सड़क के फुटपाथ तक
ख़ाबों का सौदा होता रहा रात  भर
- पंकज शादाब

आलम   ही ऐसा  बना कि बर्बाद  हो गये ,
बर्बादी  ने लगायें  चार चाँद , मशहूर  हो गये।
- अनिता सैनी

उमर की पटरियों पर जिंदगी की रेल है
ये मरना और जीना तो समय का खेल है

तिरा मासूम चे‍हरा जुल्‍फ काली और घनी
के जैसे चांद का संग बादलों के खेल है
  - दिगम्बर नासवा

Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh

जख्‍म पर मरहम लगाने क्‍यों नहीं आते
गीत कोई गुनगुनाने क्‍यों नहीं आते

आसमां से चांद तारे छीन लाऊंगा
हौसला मेरा बढ़ाने क्‍यों नहीं आते

बंद है मुट्ठी में मेरी सावनी बादल
है जो हिम्‍मत घर जलाने क्‍यों नहीं आते

रात भीगी सी है और महका हुआ दिन है
ख्‍वाब आंखों में सजाने क्‍यों नहीं आते
- दिगम्बर नासवा


तीरगी चाँद को ईनाम-ए-वफ़ा देती है,
रात-भर डूबते सूरज को सदा देती है
- शमीम हनफ़ी


कभी चाँद चमका ग़लत वक़्त पर
कभी घर में सूरज उगा देर से
-निदा फ़ाजली


मैंने देखा, मैं जिधर चला,
मेरे सँग सँग चल दिया चाँद
पीले गुलाब-सा लगता था
हल्के रंग का हल्दिया चाँद
- पण्डित नरेन्द्र शर्मा

Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh

गज़ल को ले चलो अब गांव के दिलकश नज़ारों में।
मुसलसल फ़न का दम घुटता है इऩ अदबी इदारों में।
अदीबो, ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुल्लमे के सिवा क्या है फ़लक के चांद-तारों में
- अदम गोंडवी

चाँद है ज़ेरे-क़दम. सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया
शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलोना हो गया
- अदम गोंडवी

....... और अंत में मेरी यानी डॉ. वर्षा सिंह की शायरी में शामिल चांद और चांदनी 😊❤😊

तुम रात के सिरहाने इक चांद तो रख जाते
नींदों  में उदासी  के सपने तो  नहीं आते
- डॉ वर्षा सिंह

रात के माथे टीका चांद
खीर सरीखा मीठा चांद

हंसी चांदनी धरती पर
आसमान में चहका चांद

महकी बगिया यादों की
लगता महका महका चांद

उजली चिट्ठी  चांदी- सी
नाम प्यार के लिखता चांद

"वर्षा" मांगे दुआ यही
मिले सभी को अपना चांद
- डॉ. वर्षा सिंह

Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh

बज रही बांसुरी
सज रही ज़िन्दगी
चांद की आहटें
सुन रही चांदनी
मन में कान्हा बसे
रोशनी -  रोशनी
इश्क़ गढ़ने लगा
हर तरफ आशिक़ी
नेह - "वर्षा" हुई
भीगती शायरी
          - डॉ वर्षा सिंह


धरती पर पानी लिख देना
आंचल को धानी लिख देना

चाहत पर बंधन का पहरा
कुछ तो मनमानी लिख देना

बेशक लिखना अमर प्यार को
दुनिया को फानी लिख देना

इंतज़ार में चांद - रात के
दिन की कुर्बानी लिख देना

मौसम को यदि राजा लिखना
"वर्षा" को रानी लिख देना

       ❤ डॉ. वर्षा सिंह


Painting by Dr. (Miss) Sharad Singh