सोमवार, मई 01, 2017

चुभ रही ख़ामोशियां, कुछ तो कहो

प्रिय मित्रो,
              मेरे ग़ज़ल संग्रह "वक़्त पढ़ रहा है"  से एक ग़ज़ल आप सब के लिए....
चुभ रही ख़ामोशियाँ कुछ तो कहो
उठ रही हैं, उंगलियां कुछ तो कहो
#वक़्त_पढ़_रहा_है